दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से गणित कक्षा 10 के वास्तविक संख्याएँ, बहुपद, दो चर वाले रैखिक समीकरण युग्म, द्विघात समीकरण, समांतर श्रेढियाँ के महतवपूर्ण सूत्र को बिल्कुल आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया है, जिसे पढ़ कर आप अपनी पढाई को और बेहतर कर सकते हो………|
अध्याय-1: वास्तविक संख्याएँ
यूक्लिड विभाजन प्रमेयिका
- दो धनात्मक पूर्णांक a और b दिए रहने पर, ऐसी अद्वितीय पूर्ण संख्याएँ q और r विद्यमान हैं कि a = bq + r (भाज्य=भाजक ˣ भागफल + शेषफल) तथा r बड़ा हो या बराबर हो 0 के और b, 0 से बड़ा हो।
- दो संख्याओं का गुणनफल = LCM × HCF
अध्याय-2: बहुपद
रैखिक बहुपद
घात 1 के बहुपद को रैखिक बहुपद कहते हैं।रैखिक बहुपद का व्यापक रूप हैः ax + b, उदाहरण:2x – 3, √3 x + 5, y + √2 आदि।
द्विघात बहुपद
घात 2 के बहुपद को द्विघात बहुपद कहते हैं। द्विघात बहुपद का व्यापक रूप हैः ax² + bx + c, जहाँ a, b, c वास्तविक संख्याये हैं और a ≠ 0
त्रिघात बहुपद
घात 3 का बहुपद त्रिघात बहुपद कहलाता है। वास्तव में, त्रिघात बहुपद का सबसे व्यापक रूप हैः ax³ + bx² + cx + d, जहाँ a, b, c, d वास्तविक संख्याये हैं और a ≠ 0
किसी बहुपद के शून्यकों और गुणांकों में संबंध
शून्यंकों का योग
शून्यको के योग और गुणनफल से द्विघात बहुपद ज्ञात करना
यदि α, β द्विघात बहुपद p(x) = ax² + bx + c, a ≠ 0 के शून्यक हों तो
शून्यको का योग α + β = – b/a = – (x का गुणांक)/ (x² का गुणांक)
शून्यंकों का गुणनफल αβ = c/a = (अचर पद)/(x² का गुणांक)
त्रिघात बहुपद के शून्यक
यदि किसी त्रिघात बहुपद ax³ + bx² + cx + d के शून्यक α, β, γ हों तो यह सिद्ध किया जा सकता है कि
α + β + γ = – b/a
αβ + βγ + γα = c/a
और αβγ = – d/a
बहुपद को भाग देने की एल्गोरिथ्म (कलन विधि)
यदि p(x) और g(x) कोई दो बहुपद हैं जहाँ g(x) ≠ 0 हो तो हम बहुपद q(x) और r(x) ऐसे प्राप्त कर सकते हैं कि
p(x) = g(x) × q(x) + r(x)
भाज्य = भाजक × भागफल + शेषफल
अध्याय-3: दो चर वाले रैखिक समीकरण युग्म
दो चर वाले रैखिक समीकरण
- दो चरों में दो रैखिक समीकरण एक रैखिक समीकरणों का युग्म कहलाता है। रैखिक समीकरण युग्म का सबसे व्यापक रूप हैः
a₁ x + b₁ y + c₁ = 0
a₂ x + b₂ y + c₂ = 0
जहाँ a₁, a₂, b₁, b₂, c₁, c₂ ऐसी वास्विक संख्याएं हैं कि a₁² + b₁² ≠ 0, a₂² + b₂² ≠ 0
- एक रैखिक समीकरण युग्म को ग्राफीय रूप में निरूपित किया जा सकता है और हल किया जा सकता है।
(i) ग्राफीय विधि द्वारा
(ii) बीजगणितीय विधि द्वारा
रैखिक समीकरण युग्म
ये दो रैखिक समीकरण उन्हीं दो चरों x और y में हैं। इस प्रकार के समीकरणों को दो चरों में रैखिक समीकरणों का एक युग्म (या रैखिक समीकरण युग्म) कहते हैं।
उदाहरण
- x – 2y = 0………….. समीकरण (1)
- 3x + 4y = 20 ………. समीकरण (2)
हम इन समीकरणों के माध्यम से x और y के मान ज्ञात कर सकते हैं।
ज्यामितीय दृष्टि से रैखिक समीकरण युग्म
(i) दोनों रेखाएँ एक बिदु पर प्रतिच्छेद करती हैं।
(ii) दोनों रेखाएँ प्रतिच्छेद नहीं करती हैं, अर्थात् वे समांतर हैं।
(iii) दोनों रेखाएँ संपाती हैं।
रैखिक समीकरण युग्म के प्रकार (Types Pair of Linear Equations)
(i) रैखिक समीकरणों का संगत युग्म
(ii) रैखिक समीकरणों का असंगत युग्म
(iii) रैखिक समीकरणों का आश्रित युग्म
रैखिक समीकरण युग्म का ग्राफीय विधि से हल
रैखिक समीकरणों का असंगत युग्म
एक रैखिक समीकरण युग्म, जिसका कोई हल नहीं होता, रैखिक समीकरणों का असंगत युग्म कहलाता है।
रैखिक समीकरणों का संगत युग्म
एक रैखिक समीकरण युग्म, जिसका हल होता है, रैखिक समीकरणों का संगत युग्म कहलाता है।
दो चरों के रैखिक समीकरणों का आश्रित युग्म
तुल्य रैखिक समीकरणों के एक युग्म के अपरिमित रूप से अनेक हल होते हैं। इस युग्म को दो चरों के रैखिक समीकरणों का आश्रित युग्म कहते हैं। ध्यान दीजिए कि रैखिक समीकरणों का आश्रित युग्म सदैव संगत होता है।
(i) रेखाएँ एक बिंदु पर प्रतिच्छेद कर सकती हैं। इस स्थिति में, समीकरण युग्म का अद्वितीय हल होता है (अविरोधी समीकरण युग्म)।
(ii) रेखाएँ समांतर हो सकती हैं। इस स्थिति में, समीकरणों का कोई हल नहीं होता है (असंगत समीकरण युग्म)।
(iii) रेखाएँ संपाती हो सकती हैं। इस स्थिति में, समीकरणों के अपरिमित रूप से अनेक हल होते हैं [आश्रित (संगत) समीकरण युग्म]
एक रैखिक समीकरण युग्म को हल करने की बीजगणितीय विधि
एक रैखिक समीकरण युग्म को हल करने के लिए कई बीजगणितीय (बीजीय) विधियाँ हैं। जो निम्न प्रकार से हैं:
- विलोपन विधि
- प्रतिस्थापन विधि
- वज्र-गुणन विधि
- ग्राफिए विधि
- बीजगणितीय विधि
समान्तर रेखाएं
समान्तर होगीं यदि a₁/a₂ = b₁/b₂ ≠ c₁/c₂
प्रतिच्छेदी रेखाएँ
प्रतिच्छेदी होगीं यदि a₁/a₂ ≠ b₁/b₂
संपाती रेखाएं
सम्पाती होगीं यदि a₁/a₂ = b₁/b₂ = c₁/c₂
अध्याय-4: द्विघात समीकरण
द्विघात समीकरण क्या है?
एक द्विघात समीकरण में, एक चर, वर्ग में होता है। इस प्रकार के समीकरण को घात 2 का समीकरण भी कहा जाता है। बीजीय व्यंजक ax² + bx + c = 0, (जहाँ a ≠ 0 और a, b, c वास्तविक संख्याएं हों) के रूप में होने वाले समीकरण द्विघात समीकरण कहा जाता है।
द्विघात समीकरण के मूल
किसी भी द्विघात समीकरण ax² + bx + c = 0, के अधिकतम 2 मूल हो सकते हैं।
द्विघात समीकरणों को हल करने की विधियाँ
द्विघात समीकरणों को हल करने के लिए निम्नलिखित दो विधियों का प्रयोग करते हैं:
- गुणनखंड विधि
- पूर्ण वर्ग विधि
द्विघात समीकरण का व्यापक रूप ax² + bx + c = 0 होता है|
समीकरण ax² + bx + c = 0 के मूल
X = (-b±√(b^2-4ac))/2a द्वारा निर्धारित होते हैं।
यदि, d= b² – 4ac > 0 है तो दो भिन्न और वास्तविक मूल होंगे। X = (-b+√(b^2-4ac))/2a , X = (-b-√(b^2-4ac))/2a
d = b² – 4ac को इस द्विघात समीकरण का विविक्तकर कहते हैं।
द्विघात समीकरण के मूलों की प्रकृति
(i) दो भिन्न वास्तविक मूल होते हैं, यदि b² – 4ac > 0 हो
(ii) दो बराबर वास्तविक मूल होते हैं, यदि b² – 4ac = 0 हो
(iii) कोई वास्तविक मूल नहीं होता, यदि b² – 4ac < 0 हो
अध्याय-5: समांतर श्रेढियाँ
समांतर श्रेढ़ी क्या है
गणित में समान्तर श्रेढ़ी अथवा समान्तर अनुक्रम का अर्थ है, संख्याओं का एक ऐसाअनुक्रम या श्रेणी है जिसके दो क्रमागत पदो का अन्तर सामान या नियत होता है, उसे समान्तर श्रेढ़ी कहा जाता है।दूसरे शब्दों में, संख्याओं की एक ऐसी सूची है जिसमें प्रत्येक पद अपने पद में एक निश्चित संख्या जोड़ने पर प्राप्त होती है, वह समांतर श्रेढ़ी कहलाता हैं।
समांतर श्रेढ़ी का व्यापक रूप
एक समांतर श्रेढ़ी को निरूपित करती है, जहाँ a पहला पद है और d सार्व अंतर है। इसे समांतर श्रेढ़ी का व्यापक रूप कहते हैं। a, a + d, a + 2d, a + 3d, ……… आदि।
समान्तर श्रेढ़ी का फार्मूला या सूत्र
सामान्यतः समान्तर श्रेढ़ी को निम्न प्रकार से लिख सकते हैं: a₁, a₂, a₃, a₄, …… aₙ एक समान्तर श्रेढ़ी कहलाता है। श्रेढ़ी की प्रत्येक संख्या को पद कहते हैं। जिसमें a₁ को प्रथम पद कहते हैं तथा aₙ श्रेढ़ी का n वां पद है।
aₙ = a + (n – 1) d
समान्तर श्रेणी में सार्व अंतर
सार्व अंतर (d) a₂ – a₁ = a₃ – a₂ = ……. = aₙ – aₙ₋₁ = d होता है।
किसी भी AP में पहले पद से जुड़ने या घटने वाली संख्या को सार्व अंतर कहा जाता है। समान्तर श्रेढ़ी के सार्व अंतर धनात्मक, ऋणात्मक तथा शून्य हो सकता है।
A.P:- का nवाँ पद aₙ = a + (n – 1) d
समान्तर श्रेढ़ी के प्रथम N पदों का योग
एक समान्तर श्रेढ़ी के पहले n पदों का योग Sₙ = n/2[2a + (n – 1) d] है।
दूसरे रूप में Sₙ = n/2[a + aₙ] = n/2[a + l]
ध्यान देनें योग्य बात
परिणाम का यह रूप उस स्थिति में उपयोगी है, जब A. P. के प्रथम और अंतिम पद दिए हों तथा सार्व अंतर नहीं दिया गया हो।
किसी A. P. का nवाँ पद उसके प्रथम n पदों के योग और प्रथम (n – 1) पदों के योग के अंतर के बराबर है।
अर्थात् aₙ = Sₙ – Sₙ₋₁ है।
प्रथम N धन पूर्णांकों का योग
इसलिए Sₙ = n(1 + n) / 2 या Sₙ = n(n + 1) / 2 से प्राप्त किया जाता है
तो दोस्तों मैं उम्मीद करता हूँ की आपको ये पोस्ट अच्छा लगा होगा, अगर अच्छा लगा तो दोस्तों में शेयर कर सकते है ताकी वो भी अपनी पढाई को बेहतर कर सके||