Class 10 History Chapter 5 Arthvevastha Aur Aajivika Prashn Uttar

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history chapter 5

दोस्तों इस पोस्ट मैं आपको बिहार बोर्ड Class 10 History Chapter 5 Arthvevastha Aur Aajivika Prashn Uttar को बहुत ही आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया हूँ उम्मीद करता हूँ की आपको जरूर पसंद आएगी । और दोस्तों आप गणित विषय की तैयारी विडियो के माध्यम से करना चाहते हैं तो आप हमारे Youtube Channel Unlock Study पर जाकर कर सकते हो ।

Class 10 History Chapter 5 Arthvevastha Aur Aajivika Prashn Uttar

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर रूप में चार विकल्प दिए गए हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे उनमें सही का चिह्न लगावें :

1. स्पिनिंग जेनी का आविष्कार कब हुआ ?

(क) 1769 ई०

(ख) 1770 ई०

(ग) 1773 ई०

(घ) 1775 ई०

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(ख) 1770 ई०

2. सेफ्टीलैंप का आविष्कार किसने किया ?

(क) जेम्स हारग्रीब्ज

(ख) जॉन के

(ग) क्राम्पटन

(घ) डेवी

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(घ) डेवी

3. बम्बई में सर्वप्रथम सूती कपड़ों के मिलों की स्थापना कब हुई ?

(क) 1851 ई०

(ग) 1907 ई०

(ख) 1885 ई०

(घ) 1914 ई०

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(क) 1851 ई०

4. 1917 ई० में भारत में पहली जूट मिल किस शहर में स्थापित हुआ ?

(क) कलकत्ता

(ग) बम्बई

(ख) दिल्ली

(घ) पटना

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(क) कलकत्ता

5. भारत में कोयला उद्योग का आरंभ कब हुआ ?

(क) 1907 ई०

(ख) 1914 ई०

(ग) 1916 ई०

(घ) 1919 ई०

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(ख) 1914 ई०

6. जमशेद जी टाटा ने टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी की स्थापना कब की ?

(क) 1854 ई०

(ख) 1907 ई०

(ग) 1915 ई०

(घ) 1923 ई०

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(ख) 1907 ई०

7. भारत में टाटा हाइड्रो इलेक्ट्रीक पावर स्टेशन की स्थापना कब हुई ?

(क) 1910 ई०

(ख) 1951 ई०

(ग) 1955 ई०

(घ) 1962 ई०

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(क) 1910 ई०

8. इंगलैण्ड में सभी स्त्री एवं पुरुषों को वयस्क मताधिकार कब प्राप्त हुआ ?

(क) 1838 ई०

(ख) 1881 ई०

(ग) 1918 ई०

(घ) 1932 ई०

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(ग) 1918 ई०

9. ‘अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की स्थापना कब हुई ?

(क) 1848 ई०

(ख) 1881 ई०

(ग) 1885 ई०

(घ) 1920 ई०

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(घ) 1920 ई०

10. भारत के लिए पहला फैक्ट्री एक्ट कब पारित हुआ ?

(क) 1838 ई०

(ख) 1858 ई०

(ग) 1881 ई०

(घ) 1911 ई०

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(ग) 1881 ई०

II. रिक्त स्थानों की पूति करें :

1. सन् 1838 ई० में ब्रिटेन में चर्चिस्ट आंदोलन की शुरूआत हुई।

2. सन् 1926 ई० में मजदूर संघ अधिनियम पारित हुआ ।

3. न्यूनतम मजदूरी कानून सन् 1948  ई० में पारित हुई ।

4. अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना 1920 ई० में हुई।

5. प्रथम फैक्ट्री एक्ट में महिलाओं एवं बच्चों की काम के घंटे एवं मजदूरी को निश्चित किया गया।

III. सुमेलित करें :

स्तम्भ-क                                स्तम्भ ख

(i) स्पिनिंग जेनी                (क) सैम्यूए क्राम्पटन

(ii) फ्लाईंग शटल            (ख) एडमण्ड कार्टराईट

(iii) पावरलूम                  (ग) जेम्सवाट

(iv) वाष्प इंजन                (घ) जॉन के

(v) स्पिनिंग म्यूल              (ङ) जेम्स हारग्रीब्ज

उत्तर(i)- ङ

(ii) – घ

(iii) – ख

(iv) – ग

(v) – क।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न.

प्रश्न 1. फैक्टी प्रणाली के विकास के किन्हीं दो कारणों को बताएँ ।

उत्तर-मशीनों एवं नये-नये यंत्रों के आविष्कार ने फैक्ट्री प्रणाली को विकसित किया जिसके फलस्वरूप उद्योग और व्यापार के नए-नए केन्द्रों का जन्म हुआ।

प्रश्न 2. बुर्जुआ वर्ग की उत्पति कैसे हुई ?

उत्तर-औद्योगीकरण के फलस्वरूप ब्रिटिश सहयोग से भारत के उद्योग में पूँजी लगानेवाल उद्योगपति पूँजीपति बन गए । अतः समाज में तीन वर्ग का उदय हुआ-पूँजीपति वर्ग, बुर्जुआवर्ग (मध्यमवर्ग) एवं मजदूर वर्ग। आगे चलकर यही बुर्जुआवर्ग भारत के राष्ट्रीव आंदोलन में अंग्रेजों की औपनिवेशिक एवं शोषण की नीति के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभाया।

प्रश्न 3. अठारहवीं शताब्दी में भारत के मुख्य उद्योग कौन-कौन से थे ?

उत्तर-अठारहवीं शताब्दी में भारत में वस्त्र उद्योग, चाय उद्योग और सीमेंट उद्योग, कोयला उद्योग, जूट उद्योग जैसे कई उद्योगों का विकास हुआ। बंबई सूती वस्त्र उद्योग का महत्वपूर्ण केन्द्र था।

प्रश्न 4. निरुद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-एक तरफ जहाँ मशीनों के आविष्कार ने उद्योग एवं उत्पादन में वृद्धि कर औद्योगीकरण की प्रक्रिया की शुरूआत की थी वहीं भारत में कुटीर उद्योगा कर होने की कगार घर पहुँच गया था। भारतीय इतिहासकारों ने भारत के उद्योग के लिए इसे निरुद्योगीकरण (Deindustrialisation) की संज्ञा दी ।

प्रश्न 5. औद्योगिक आयोग की नियुक्ति कब हुई ? इसके क्या उद्देश्य थे ?

उत्तर-औद्योगिक आयोग की स्थापना 1916 ई० में हुई। इसका उद्देश्य भारतीय उद्योग तथा व्यापार को भारतीय वित्त से संबंधित प्रयत्नों के लिए उन क्षेत्रों का पता लगाना था जिसे सरकार सहायता दे सके ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-औद्योगीकरण ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन मानव श्रम के द्वारा न होकर मशीनों के द्वारा होता है। इसमें उत्पादन वृहत् पैमाने पर होता है और जिसकी खपत के लिए बड़े बाजार को आवश्यकता होती है। नए-नए मशीनों का आविष्कार एवं तकनीकी विकास पर औद्योगीकरण निर्भर करता है। इसके प्रेरक तत्त्व के रूप में मशीन के अलावे पूँजी निवेश एवं श्रम का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।

प्रश्न 2. औद्योगीकरण ने मजदूरों की आजीविका को किस तरह प्रभावित किया ?

उत्तर-औद्योगीकरण ने नई फैक्ट्री प्रणाली को जन्म दिया जिससे गृह उद्योग के मालिक अब मजदूर बन गए जिनको आजीविका बड़े-बड़े उद्योगपतियों द्वारा प्राप्त वेतन पर निर्भर करता था। औरतों और बच्चे से भी 16 से 18 घंटे काम लिये जाते थे। उनके पास दैनिक उपभोग के पदाथों को खरीदने के लिए धन नहीं रहा। अतः मजदूरों ने आंदोलन का रूख लिया।

प्रश्न 3. स्लम पद्धति की शुरूआत कैसे हुई ?

उत्तर-औद्योगीकरण ने स्लम पद्धति की शुरूआत की। मजदूर शहरों में छोटे-छोटे घरों में जहाँ किसी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं थी रहने को बाध्य थे। आगे चलकर उत्पादन के उचित वितरण के लिए आंदोलन शुरू किए। चूंकि पूँजीपति द्वारा उनका बुरी तरह शोषण किया जाता था इसलिए उन्होंने अपना संगठन बनाकर पूँजीपतियों के खिलाफ वर्ग-संघर्ष की शुरूआत की ।

प्रश्न 4. न्यूनतम मजदूरी कानून कब पारित हुआ ?

उत्तर-न्यूनतम मजदूरी कानून 1948 ई० में पारित हुआ। इसका उद्देश्य कुछ उद्योगों में मजदूरी की दरें निश्चित करना था। न्यूनतम मजदूरी के संदर्भ में कहा गया कि मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी ऐसी होनी चाहिए जिससे मजदूर केवल अपना ही गुजारा न कर सकें बल्कि इससे कुछ और अधिक हो ताकि वह अपनी कुशलता को भी बनाये रख सकें।

प्रश्न 5. कोयला एवं लौह उद्योग ने औद्योगीकरण को गति प्रदान की, कैसे ?

उत्तर-उद्योग की प्रगति कोयले एवं लोहे के उद्योग पर बहुत अधिक निर्भर करती है। लोहे से नए-नए यंत्रों का निर्माण होता है और कोयले से ऊर्जा पैदा की जाती है, जिससे ये यंत्र चलाये जाते हैं। अतः नए उद्योगों के निर्माण की प्रक्रिया में कोयला एवं लौह उद्योग गति प्रदान करते हैं, अतः हम कह सकते हैं कि कोयला एवं लौह उद्योग ने औद्योगीकरण की प्रक्रिया को गति प्रदान की।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. औद्योगीकरण के कारणों का उल्लेख करें।

उत्तर-औद्योगीकरण के निम्नलिखित कारण हैं:

1. कृषि पर अधिक निर्भरता:- पहले ज़्यादातर लोग खेती पर निर्भर थे। खेती से सीमित आमदनी होती थी और सभी को काम नहीं मिल पाता था।

2. नई मशीनों और आविष्कारों का विकास:- जैसे-जैसे मशीनें बनीं (जैसे – भाप इंजन, स्पिनिंग जेन्नी), काम तेज़ और आसान होने लगा।

3. कच्चे माल की भरपूर उपलब्धता:- कपास, कोयला, लोहा जैसे कच्चे माल की आसानी से उपलब्धता ने उद्योग लगाने में मदद की। भारत जैसे उपनिवेशों से सस्ता कच्चा माल मिल जाता था।

4. बाजारों की ज़रूरत:- मशीनों से ज़्यादा माल बनने लगा, जिसे बेचने के लिए बाज़ार चाहिए था। उपनिवेशों में तैयार माल आसानी से बेचा जाता था।

5. रोजगार की आवश्यकता:- बहुत से लोग बेरोजगार थे। उद्योगों ने लोगों को रोज़गार देना शुरू किया।

6. शहरों का विकास:- उद्योगों के कारण लोग गांवों से शहरों में आए। इससे शहरीकरण (urbanization) बढ़ा और नए उद्योग लगे।

7. संचार और परिवहन में सुधार:- रेलवे, सड़कों और जहाजों ने माल एक जगह से दूसरी जगह ले जाना आसान बना दिया। इससे व्यापार और उद्योगों में तेजी आई।

8. पूंजी और निवेश:- व्यापारियों और अमीर लोगों ने उद्योगों में पैसा लगाना शुरू किया। सरकारों ने भी उद्योगों को बढ़ावा दिया।

9. औद्योगिक क्रांति का असर:- सबसे पहले इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हुई। वहाँ से बाकी देशों ने सीखकर अपने-अपने उद्योग शुरू किए।

10. नई सोच और मेहनती लोग:- कुछ लोगों में नया काम करने और व्यापार बढ़ाने की सोच थी। उन्होंने नए-नए उद्योग शुरू किए।

प्रश्न 2. औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तन प्रकाश डालें ?

औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तन बहुत गहरे और व्यापक थे। इससे समाज, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, जीवनशैली आदि सभी क्षेत्रों में बड़ा बदलाव आया।

औद्योगीकरण के परिणाम स्वरूप होने वाले परिवर्तन:

1. उद्योगों का विकास:- मशीनों से बड़ी मात्रा में उत्पादन होने लगा। कई नए उद्योग स्थापित हुए, जैसे – कपड़ा उद्योग, इस्पात उद्योग, कोयला उद्योग आदि।

2. शहरों का विस्तार (शहरीकरण):- लोग गांव छोड़कर काम की तलाश में शहरों की ओर आने लगे। इससे छोटे कस्बे भी धीरे-धीरे बड़े शहरों में बदल गए।

3. रोजगार के नए अवसर:- फैक्ट्रियों में मजदूरों की जरूरत बढ़ी, जिससे बेरोजगार लोगों को काम मिला।  साथ ही तकनीकी और प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में भी नई नौकरियां बनीं।

4. जीवनशैली में बदलाव:-  लोग अब मशीनों पर निर्भर होने लगे। समय बचने लगा और दैनिक जीवन में सुविधाएं बढ़ीं।

5. आय और उत्पादन में वृद्धि:- अधिक उत्पादन होने से देश की आय और लोगों की कमाई बढ़ी। व्यापार और अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।

6. श्रमिकों की स्थिति में बदलाव:-  मजदूरों को लंबे समय तक काम करना पड़ता था और मजदूरी कम मिलती थी। इससे श्रमिक आंदोलनों की शुरुआत हुई और श्रमिक अधिकारों की माँग उठी।

7. पर्यावरण पर प्रभाव:-  उद्योगों से निकलने वाले धुएं और कचरे ने प्रदूषण बढ़ाया। पेड़ कटे, नदियाँ गंदी हुईं और हवा भी दूषित होने लगी।

8. नए वर्गों का निर्माण:- समाज में दो नए वर्ग प्रमुख हुए: पूंजीपति वर्ग (Factory Owner), मजदूर वर्ग (Labour Class)

9. महिलाओं और बच्चों का श्रम:-  महिलाओं और बच्चों को भी फैक्ट्रियों में सस्ते श्रमिक के रूप में काम पर लगाया गया। इससे उनका शोषण हुआ और उनकी पढ़ाई-लिखाई बाधित हुई।

10. वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति:-  विज्ञान और तकनीक में तेज़ी से विकास हुआ। बिजली, रेलवे, टेलीग्राफ, टेलीफोन जैसे आविष्कार हुए।

11. शिक्षा और जागरूकता:-  औद्योगिक क्षेत्रों में स्कूल और संस्थान बनने लगे। लोगों में अधिकारों और सुधारों के लिए जागरूकता आई।

प्रश्न 3. उपनिवेशवाद (Colonialism) से क्या समझते है? औद्योगीकरण ने उपनिवेशवाद को जन्म कैसे दिया?

उपनिवेशवाद एक ऐसी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था है जिसमें एक शक्तिशाली देश किसी दूसरे कमजोर देश या क्षेत्र पर सामरिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक नियंत्रण स्थापित करता है और उसे अपना उपनिवेश (colony) बना लेता है।

मुख्य विशेषताएँ:

1. राजनीतिक नियंत्रण – उपनिवेश बनाने वाला देश दूसरे देश की शासन-व्यवस्था पर कब्जा कर लेता है।

2. आर्थिक शोषण – उपनिवेश से कच्चा माल लेकर अपने उद्योगों के लिए इस्तेमाल करता है, और वहाँ बना माल वहीं महंगे दामों में बेचता है।

3. सांस्कृतिक प्रभुत्व – उपनिवेश पर अपने धर्म, भाषा, शिक्षा और सोच थोपता है।

4. स्थानीय संसाधनों का दोहन – जमीन, खनिज, जंगल, पानी जैसे संसाधनों का शोषण करता है।

औद्योगीकरण ने उपनिवेशवाद को जन्म इसलिए दिया क्योंकि यूरोपीय शक्तियों को कच्चा माल, बाजार, सस्ते श्रमिक, और राजनीतिक प्रभाव चाहिए था – जो उन्हें विकासशील और पिछड़े देशों में मिल सकते थे। इसलिए उन्होंने इन देशों पर कब्जा जमाकर उन्हें उपनिवेश बना लिया।

प्रश्न4. कुटीर उद्योग के महत्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालें ?
उत्तर:- कुटीर उद्योग वे छोटे उद्योग होते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में घरों या छोटी-छोटी इकाइयों में पारंपरिक साधनों से चलाए जाते हैं। ये उद्योग आमतौर पर परिवार के सदस्य मिलकर चलाते हैं।

उदाहरण: हथकरघा, कशीदाकारी, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी का काम, कालीन बुनाई, बांस से बनी वस्तुएँ आदि।

⇒महत्व और उपयोगिता:

1. रोज़गार का साधन: कुटीर उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गार लोगों को काम देने में सहायक होते हैं, विशेषकर महिलाओं और गरीब वर्ग के लिए।

2. स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा: ये उद्योग स्थानीय कच्चे माल का उपयोग कर देशी वस्तुओं का निर्माण करते हैं, जिससे आत्मनिर्भरता बढ़ती है।

3. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूती: गाँवों में ये उद्योग आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाते हैं, जिससे ग्रामीण विकास को बल मिलता है।

4. कम लागत में उत्पादन: इन उद्योगों में अधिक मशीनों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे कम लागत में वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

5. परंपरागत कला और संस्कृति का संरक्षण: कुटीर उद्योगों में पारंपरिक हस्तशिल्प, कला, और तकनीकों का संरक्षण होता है, जो हमारी संस्कृति की पहचान हैं।

6. पर्यावरण के अनुकूल: ये उद्योग कम ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं, जिससे ये पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं।

प्रश्न 5:”औद्योगीकरण ने सिर्फ आर्थिक ढाँचे को ही प्रभावित नहीं किया बल्कि राजनीतिक परिवर्तन का भी मार्ग प्रशस्त किया, कैसे?”

उत्तर: औद्योगीकरण (Industrialization) केवल उत्पादन और व्यापार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने समाज और राजनीति दोनों को गहराई से प्रभावित किया। इसके कारण कई राजनीतिक परिवर्तन हुए:

1. पूंजीवाद और वर्ग संघर्ष की शुरुआत: उद्योगों के विकास से पूंजीपति वर्ग (बड़े मालिक) और मजदूर वर्ग (श्रमिक) सामने आए। इससे समाज में आर्थिक असमानता बढ़ी और राजनीतिक चेतना फैली। मजदूरों ने अपने अधिकारों की मांग शुरू की जिससे राजनीतिक आंदोलनों की शुरुआत हुई।

 2. लोकतंत्र और अधिकारों की माँग: औद्योगिक मजदूरों ने समान वेतन, काम के घंटे, और मताधिकार की मांग की। इससे लोकतंत्र और संवैधानिक सरकारों की दिशा में आंदोलन तेज़ हुए।

 3. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को बढ़ावा: औद्योगीकरण से यूरोपीय देशों को कच्चा माल और बाजार चाहिए था। इसके चलते उन्होंने एशिया और अफ्रीका के देशों को उपनिवेश बना लिया, जिससे वहाँ का राजनीतिक नियंत्रण भी बदल गया।

 4. मजदूर संगठनों और राजनीतिक पार्टियों का गठन: मजदूरों ने अपने हितों की रक्षा के लिए यूनियन और राजनीतिक दल बनाए। इससे साम्यवाद, समाजवाद और मजदूर आंदोलनों की शुरुआत हुई।

5. नई राजनीतिक विचारधाराओं का विकास: औद्योगीकरण के साथ-साथ उदारवाद, राष्ट्रवाद, साम्यवाद, और समाजवाद जैसी राजनीतिक विचारधाराओं का जन्म हुआ। इन विचारधाराओं ने आगे चलकर राजनीतिक क्रांतियों को जन्म दिया।

औद्योगीकरण ने केवल आर्थिक व्यवस्था में बदलाव नहीं लाया, बल्कि राजनीतिक चेतना, विचारधाराओं, आंदोलनों और शासन प्रणाली को भी प्रभावित किया। इससे लोकतांत्रिक मूल्य, मजदूर अधिकार, और राजनीतिक परिवर्तन की एक नई दिशा मिली।