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Bihar Board Class 10 History Chapter 4 Bharat Me Rastravad Ka Saransh
अध्याय 4: भारत में राष्ट्रवाद – सारांश
यह अध्याय भारत में राष्ट्रवाद के विकास और स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न चरणों का वर्णन करता है। यह बताया गया है कि कैसे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोगों में असंतोष उत्पन्न हुआ और धीरे-धीरे एक संगठित राष्ट्रवादी आंदोलन का रूप ले लिया। इस आंदोलन में विभिन्न वर्गों, समुदायों, नेताओं और विचारधाराओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
1. राष्ट्रवाद की अवधारणा
राष्ट्रवाद का अर्थ है – एक ऐसी भावना जिसमें लोग एकजुट होकर अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता और एकता के लिए कार्य करते हैं। भारत में राष्ट्रवाद का उदय 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ, जब लोगों में यह चेतना आई कि वे एक साझा इतिहास, संस्कृति और विरासत के उत्तराधिकारी हैं।
2. प्रथम विश्व युद्ध और भारत में राष्ट्रवाद
प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918) ने भारत में राष्ट्रवाद को एक नई दिशा दी। इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने युद्ध के लिए भारत से जबरन सैनिक भर्ती की, भारी कर लगाए और जरूरी वस्तुओं की कीमतें बढ़ गईं। इससे लोगों में असंतोष बढ़ा। वहीं, भारतवासियों को यह उम्मीद थी कि युद्ध के बाद उन्हें स्वशासन का अधिकार मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
3. महात्मा गांधी का उदय
1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटे और भारतीय राजनीति में सक्रिय हुए। उन्होंने सत्याग्रह, अहिंसा और असहयोग जैसे हथियारों के जरिए राष्ट्रवाद को जन-आंदोलन बना दिया।
(i) चंपारण सत्याग्रह (1917)
गांधीजी ने बिहार के चंपारण में नील किसानों की मदद के लिए आंदोलन किया, जिसमें उन्हें सफलता मिली। यह उनका भारत में पहला सत्याग्रह था।
(ii) खेड़ा सत्याग्रह (1918)
गुजरात के खेड़ा जिले में अकाल के बावजूद किसानों से लगान वसूली जा रही थी। गांधीजी ने किसानों के साथ मिलकर सत्याग्रह किया, जिससे सरकार को झुकना पड़ा।
(iii) अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन (1918)
मजदूरों की वेतन वृद्धि के लिए गांधीजी ने भूख हड़ताल की, जिससे मिल मालिकों को समझौता करना पड़ा।
4. रॉलेक्ट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919)
ब्रिटिश सरकार ने 1919 में रॉलेक्ट एक्ट पास किया, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के जेल में डाला जा सकता था। इसके खिलाफ गांधीजी ने राष्ट्रव्यापी विरोध शुरू किया।
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन, जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवाईं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया।
5. खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन (1920–22)
खिलाफत आंदोलन तुर्की के खलीफा के समर्थन में भारतीय मुसलमानों द्वारा शुरू किया गया। गांधीजी ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और इसे असहयोग आंदोलन से जोड़ दिया।
असहयोग आंदोलन के प्रमुख कार्यक्रम:
सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार
विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार
अदालतों और सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र
स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग
शराब और नशा विरोधी अभियान
चौरी-चौरा कांड (1922):
उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में एक हिंसक घटना में पुलिस थाने को जला दिया गया, जिसमें कई सिपाही मारे गए। गांधीजी ने इस घटना के बाद आंदोलन को स्थगित कर दिया, क्योंकि वे अहिंसा के पक्षधर थे।
6. स्वराज पार्टी और सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन
असहयोग आंदोलन की वापसी के बाद, कुछ नेताओं ने संवैधानिक मार्ग अपनाने का निर्णय लिया। मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास ने स्वराज पार्टी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था ब्रिटिश विधानसभाओं में जाकर उनके कामकाज में बाधा डालना।
वहीं, कुछ युवा क्रांतिकारी जैसे भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद आदि ने हिंसात्मक रास्ते अपनाकर अंग्रेजों को जवाब दिया।
7. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)
नमक कानून के विरोध में गांधीजी ने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया।
डांडी यात्रा (12 मार्च 1930):
गांधीजी ने साबरमती आश्रम से डांडी तक 240 किलोमीटर की यात्रा कर नमक कानून का उल्लंघन किया। इससे देशभर में जनता ने अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर आंदोलन किया।
इस आंदोलन में महिलाओं, किसानों, छात्रों और व्यापारियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
8. गांधी-इरविन समझौता और द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931)
सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए गांधीजी सहित हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया। बाद में गांधीजी और लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत आंदोलन बंद करने के बदले राजनीतिक कैदियों को रिहा किया गया और गांधीजी को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने के लिए लंदन बुलाया गया। पर यह सम्मेलन असफल रहा।
9. सुभाष चंद्र बोस और फॉरवर्ड ब्लॉक
सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से अलग होकर फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया। उनका नारा था – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।”
10. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांधीजी ने “करो या मरो” का नारा देते हुए भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन पूर्ण स्वतंत्रता की मांग के साथ आरंभ हुआ। अंग्रेजों ने आंदोलन को कुचलने के लिए हजारों लोगों को जेल में डाला, लेकिन आंदोलन पूरे देश में फैल गया।
11. अंततः स्वतंत्रता की ओर
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन आर्थिक रूप से कमजोर हो गया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज और कांग्रेस व अन्य आंदोलनों के दबाव में 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली।
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निष्कर्ष
भारत में राष्ट्रवाद एक लंबी प्रक्रिया का परिणाम था, जिसमें सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों की बड़ी भूमिका थी। गांधीजी के नेतृत्व में इस आंदोलन को जनांदोलन का रूप मिला। अहिंसा, सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा, असहयोग आदि ने इस आंदोलन को विशेष स्वरूप प्रदान किया। स्वतंत्रता संग्राम में सभी वर्गों – स्त्रियों, किसानों, मजदूरों, छात्रों और नेताओं – ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।