बिहार बोर्ड कक्षा 10 इतिहास अध्याय 5: अर्थव्यवस्था और आजीविका का परिचय हमने बहुत ही आसान भाषा में दिया जो आपके पढ़ाई में चार चाँद लगा देगा । अगर आप गणित का तैयारी करना चाहते हैं तो आप हमारे Youtube Channel Unlock Study पर जाकर कर सकते हैं ।
Bihar Board Class 10 History Chapter 5 Arthwevshtha Aur Aajivika Introduction
अध्याय 5: अर्थव्यवस्था और आजीविका परिचय
Bihar Board Class 10 History Chapter 5 Arthwevshtha Aur Aajivika Introduction:-मानव समाज की प्रगति और विकास में अर्थव्यवस्था और आजीविका की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। प्राचीन काल से ही मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विभिन्न साधनों की खोज करता रहा है। जैसे-जैसे समाज का विकास हुआ, वैसे-वैसे आजीविका के साधनों में भी परिवर्तन आता गया। यह अध्याय हमें भारत के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अर्थव्यवस्था और आजीविका के स्वरूप को समझने का अवसर प्रदान करता है।
इस अध्याय में हम जानेंगे कि प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक भारत में लोगों की आजीविका किस प्रकार की थी, कृषि, उद्योग, व्यापार और अन्य आर्थिक गतिविधियों में क्या बदलाव आए, तथा औपनिवेशिक शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित किया। साथ ही, यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों ने भारतीय किसानों, कारीगरों और व्यापारियों पर क्या असर डाला।
प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था और आजीविका
प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित थी। सिंधु घाटी सभ्यता में लोगों ने कृषि, पशुपालन और व्यापार को आजीविका का मुख्य साधन बनाया। हड़प्पा संस्कृति के लोग गेहूं, जौ, कपास आदि की खेती करते थे और पशुपालन भी करते थे। उनके पास व्यापारिक गतिविधियाँ भी थीं, जिनमें वे स्थलीय और जलमार्गों से व्यापार करते थे। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे नगरों की योजना और निर्माण कार्य इस बात का प्रमाण है कि अर्थव्यवस्था सुनियोजित और समृद्ध थी।
वैदिक काल में कृषि का और अधिक विकास हुआ। लोहे के उपयोग से खेती के औजार बनाए गए और कृषि की उत्पादकता बढ़ी। लोग गायों, बैलों और घोड़ों का पालन करते थे। समाज में वर्ण व्यवस्था के अनुसार विभिन्न वर्गों के लोग विभिन्न कार्यों में लगे थे – ब्राह्मण शिक्षा और पूजा में, क्षत्रिय युद्ध में, वैश्य व्यापार व कृषि में तथा शूद्र सेवा कार्य में।
मौर्य और गुप्त काल की आर्थिक स्थिति
मौर्य साम्राज्य के काल में राज्य ने अर्थव्यवस्था पर सीधा नियंत्रण रखा। चाणक्य द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ में इस समय की अर्थव्यवस्था का विस्तृत वर्णन है। इसमें कर व्यवस्था, व्यापार नीति, सिंचाई व्यवस्था, खनिजों का दोहन आदि का उल्लेख मिलता है। मौर्य शासन के अधीन कृषि, उद्योग और व्यापार सभी क्षेत्रों में पर्याप्त विकास हुआ। राज्य द्वारा सड़कों, जलमार्गों और व्यापारिक केंद्रों का विकास किया गया।
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता है। इस समय कृषि का विस्तार हुआ, उद्योग-धंधे फले-फूले और व्यापारिक गतिविधियाँ बढ़ीं। समुद्रपार व्यापार (विशेषकर दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ) इस युग में चरम पर था। सोने और चांदी के सिक्के प्रचलित थे, जो एक मजबूत आर्थिक व्यवस्था को दर्शाते हैं।
मध्यकालीन भारत में अर्थव्यवस्था और आजीविका
मध्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि ही प्रधान रही, लेकिन इस समय हस्तशिल्प, कुटीर उद्योग और व्यापार को भी बढ़ावा मिला। विशेष रूप से मुग़ल काल में शिल्पकला, वस्त्र उद्योग, धातु शिल्प, चूड़ियाँ, कालीन आदि का निर्माण बड़े पैमाने पर होता था। इस समय भारत के वस्त्र – खासकर बांग्ला का मलमल और उत्तर भारत का रेशमी कपड़ा – विश्व प्रसिद्ध था।
ग्रामीण क्षेत्रों में कारीगरों और किसानों की स्थिति परस्पर निर्भर थी। किसान अनाज उगाते थे, और कारीगर कृषि उपकरण, वस्त्र, बर्तन आदि बनाते थे। इस समय विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग अपने-अपने परंपरागत पेशों में लगे हुए थे। व्यापारी वर्ग देश और विदेश में व्यापार करता था। अरब, फारस, चीन और यूरोपीय देशों से भारत के व्यापारिक संबंध थे।
औपनिवेशिक काल में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति
18वीं शताब्दी के मध्य में जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में सत्ता प्राप्त करनी शुरू की, तो भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव आने लगे। अंग्रेजों ने भारतीय कृषि और उद्योग को अपने हित में ढालना शुरू किया।
कृषि में परिवर्तन:
ब्रिटिश शासन में राजस्व वसूली की व्यवस्था ने किसानों को भारी करों के बोझ तले दबा दिया। ज़मींदारी प्रथा, रैयतवारी व्यवस्था और महालवारी व्यवस्था के अंतर्गत कर संग्रह की नई प्रणालियाँ लागू की गईं, जिनसे किसानों की स्थिति दयनीय हो गई। किसानों को नकदी फसलों – जैसे नील, कपास, अफीम आदि – की खेती करने के लिए मजबूर किया गया। इससे खाद्यान्न उत्पादन घट गया और भुखमरी की स्थितियाँ उत्पन्न हुईं।
उद्योगों की दुर्दशा:
ब्रिटिश शासन ने भारत के पारंपरिक कुटीर उद्योगों को समाप्त कर दिया। ब्रिटेन में निर्मित वस्त्रों को भारत में बेचा जाने लगा, जिससे भारतीय बुनकर बेरोजगार हो गए। अंग्रेजों ने भारत को कच्चे माल का स्रोत और अपने तैयार माल का बाजार बना दिया। परिणामस्वरूप भारत का औद्योगिक ढांचा नष्ट हो गया।
व्यापार की दिशा में बदलाव:
औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत भारत का व्यापारिक ढाँचा पूरी तरह से ब्रिटिश हितों के अनुसार संचालित होने लगा। भारतीय वस्तुओं के लिए विदेशी बाज़ार सीमित हो गए, जबकि ब्रिटिश वस्तुएँ भारत में खुलेआम बेची जाने लगीं। रेल, डाक और टेलीग्राफ जैसी आधुनिक व्यवस्थाओं का विकास हुआ, लेकिन इनका उपयोग भी मुख्यतः औपनिवेशिक शासन की जरूरतों को पूरा करने में किया गया।
भारतीय समाज पर प्रभाव
ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के कारण किसानों की आत्महत्या, भुखमरी, कारीगरों की बेरोजगारी और औद्योगिक पतन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुईं। इससे समाज में असमानता और गरीबी बढ़ी। आर्थिक शोषण ने भारतीयों में असंतोष को जन्म दिया, जो स्वतंत्रता आंदोलन का एक प्रमुख कारण बना।
निष्कर्ष
भारत की अर्थव्यवस्था और आजीविका की यात्रा एक दीर्घकालिक प्रक्रिया रही है, जिसमें समय-समय पर विभिन्न बदलाव और चुनौतियाँ आईं। प्राचीन काल की समृद्ध व्यवस्था से लेकर औपनिवेशिक शासन की विनाशकारी नीतियों तक, यह यात्रा हमें यह समझने में मदद करती है कि कैसे अर्थव्यवस्था केवल उत्पादन और व्यापार का विषय नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, सांस्कृतिक मूल्यों और मानवीय गरिमा से भी जुड़ी हुई है।
इस अध्याय से विद्यार्थियों को यह सीखने को मिलता है कि आर्थिक नीतियाँ समाज को किस प्रकार प्रभावित करती हैं और कैसे ऐतिहासिक घटनाएँ आजीविका के स्वरूप को बदल सकती हैं। आज भी जब हम भारत के विकास की बात करते हैं, तो हमें इतिहास की इन शिक्षाओं को ध्यान में रखना चाहिए ताकि हम एक समावेशी और न्यायपूर्ण अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ सकें।